सेठताराचंद किराना के वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤°à¥€ थे। छोटा सा गाà¤à¤µ था,और छोटी सी दà¥à¤•ान थी उनकी। ईमानदारी से दà¥à¤•ान चलाते थे और इजà¥à¤œà¤¤ से रहते थे। तीन बेटे थे उनके, दà¥à¤²à¥€à¤šà¤‚द,माखन और सेवा राम। गाà¤à¤µ में सिरà¥à¤« आठवीं तक का सà¥à¤•ूल था, आगे की पढ़ाई के लिठशहर जाना पड़ता था। दà¥à¤²à¥€à¤šà¤‚द और माखन ने आठवीं तक पढ़ाई की, उनकी पढ़ने में रूचि नहीं थी। आठवीं तक à¤à¥€ तिकड़म लगाकर ही पास हà¥à¤ थे।ताराचंद जी को à¤à¥€ अपनी दà¥à¤•ान में मदद की जरूरत थी ,अत: उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उनकी आगे की पढ़ाई में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ रूचि नहीं दिखाई, हालांकि उनकी माठनिरà¥à¤®à¤²à¤¾ जी चाहती थी कि वे पढ़ लिखकर अचà¥à¤›à¥€ नौकरी करे। वे दोनों ताराचंद की दà¥à¤•ान में उनके साथ काम करते लगे । समय बदला अब दà¥à¤•ान बड़ी हो गई थी, मà¥à¤¨à¤¾à¤«à¤¾ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ हो रहा था। दोनों बचà¥à¤šà¥‡ रात को à¤à¥€ दà¥à¤•ान में काम करते। ताराचंद जी उनके à¤à¤°à¥‹à¤¸à¥‡ दà¥à¤•ान छोड़कर शाम की सात बजे तक घर आ जाते थे। सब बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थे, अब गाà¤à¤µ में उनकी धनवान लोगों में गिनती होने लगी थी। ताराचंद अपने बेटे की काबलियत पर फूले नहीं समा रहै थे। तीसरा बेटा सेवा राम इन दोनों से à¤à¤•दम अलग था। उसकी पढ़ाई में बहà¥à¤¤ रूचि थी, और हमेशा अपनी ककà¥à¤·à¤¾ में पà¥à¤°à¤¥à¤® आता था,माठबहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थी। वह आगे की पढ़ाई के लिठशहर चला गया। उसकी पढ़ाई के लिठपैसे à¤à¥‡à¤œà¤¨à¥‡ पढ़ते थे, तो ताराचंद के बेटो को बहà¥à¤¤ अखरता था। वे हमेशा कहते थे -'पापा !सेवाराम शहर में पता नहीं कà¥à¤¯à¤¾ गà¥à¤²à¤›à¤°à¥à¤°à¥‡ उड़ा रहा है,देखना किसी दिन आपका नाम डà¥à¤¬à¤¾à¤•र रखेगा।' माठहमेशा कहती कि 'वह पढ़ाई कर रहा है, उसके रहने, खाने, कॉपी- किताबों, फीस में पैसा लगता होगा। तà¥à¤® तो पढ़े नहीं जो तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पता चले, देखना वह पढ़ लिखकर कà¥à¤› बन जाà¤à¤—ा तो परिवार का नाम रोशन करेगा।' मगर दà¥à¤²à¥€à¤šà¤‚द और माखन को उसके लिठपैसे à¤à¥‡à¤œà¤¨à¤¾ रास नहीं आ रहा था, वे अपने पिता के हमेशा कान à¤à¤°à¤¤à¥‡ थे कि 'पापा ! देखना शहर की हवा लगेगी, और वह हमारे परिवार का नाम डà¥à¤¬à¤¾à¤•र रखेगा।' रोज-रोज à¤à¤• ही बात सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ पर पिता पर à¤à¥€ उनकी बातों का असर होने लगा था। और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सेवा राम से कहा कि 'अब वे और पैसा नहीं à¤à¥‡à¤œà¥‡à¤‚गे, तà¥à¤®à¤¨à¥‡ बारहवीं पास कर ली है, अब आ जाओ और घर की दà¥à¤•ान है आकर दà¥à¤•ान समà¥à¤¹à¤¾à¤²à¥‹à¥¤' सेवाराम आगे पढ़ना चाहता था, आगे की पढ़ाई के लिठउसे सà¥à¤•ालरशिप मिल रही थी, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह पà¥à¤°à¤¾à¤µà¤¿à¤£à¥à¤¯ सूचि में पà¥à¤°à¤¥à¤® आया था, माठने उसे आगे पढ़ने की परमीशन दी ।उसने कà¥à¤› बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को पढ़ाना शà¥à¤°à¥‚ किया और अपना खरà¥à¤šà¤¾ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ निकाला। कामरà¥à¤¸ विषय में गà¥à¤°à¥‡à¤œà¥à¤à¤¶à¤¨ किया। बैंक की परीकà¥à¤·à¤¾ दी और उतà¥à¤¤à¥€à¤°à¥à¤£ की। वह बैंक में मैनेजर बन गया था। जब वह घर पर आया तो माठकी खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा। पापा को अपने किठपर पछतावा था। जहाठà¤à¤• तरफ सेवाराम ने  उनका नाम रोशन किया तो दूसरी तरफ दà¥à¤²à¥€à¤šà¤‚द और माखन को पà¥à¤²à¤¿à¤¸ हथकड़ी डालकर ले गई। रात में दà¥à¤•ान पर छापा पड़ा,और दोनों à¤à¤¾à¤ˆ अनाज में मिलावट करते पकड़े गà¤à¥¤ दà¥à¤•ान सील कर दी गई थी। ताराचंद जी को इसके बारे में कà¥à¤› à¤à¥€ पता नहीं था, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€Â जेल बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ गया। मगर बेटो ने कहा कि 'पापा को इसके बारे में कà¥à¤› à¤à¥€ पता नहीं है।' फिर ताराचंद की लोगों के बीच इतनी साख थी कि उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ छोड़ दिया गया। ताराचंद को इस बात का बहà¥à¤¤ सदमा लगा और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बिसà¥à¤¤à¤° पकड़ लिया। वे बस यही कह रहै थे कि 'जिन बेटों पर मैने इतना à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ किया, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मेरा नाम डà¥à¤¬à¤¾ दिया। बà¥à¤¢à¤¼à¤¾à¤ªà¥‡ में मà¥à¤à¥‡ इतना बढ़ा à¤à¤Ÿà¤•ा दिया है, कि मैं किसी को मà¥à¤‚ह दिखाने लायक नहीं छोड़ा।'
tarkeshwar Singh
41 بلاگ پوسٹس

Harshit Sahu 2 سال
Nice